“किस तरह से हमने काम करना शुरू किया है। गांव-गांव में और विकेंद्रित तरीके से काम किया। अगर कोई आते, बड़े-बड़े उद्योगपति यहां पर उद्योग लगाते, तो उसी को लोग देखते और कहते बड़ा उद्योग हो रहा है। लेकिन, अब वो नहीं आए, क्योंकि चारों तरफ से हम लोग घिरे हुए वाले इलाके हैं। ज्यादा बड़ा उद्योग कहां लगता, समुद्र के किनारे जो राज्य पड़ते हैं, उन्हीं जगहों पर ज्यादा लगता है। हम लोगों ने तो बहुत कोशिश की।”
ये जो पढ़ा आपने, ये कहना है बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का। नीतीश ने 12 अक्टूबर से चुनाव कैंपेन शुरू किया है। पहली ही रैली में मुख्यमंत्री जी बोल रहे हैं कि हमने तो बहुत कोशिश कर ली। बिहार में तो उद्योग लग ही नहीं सकते।
बिहार ही नहीं, कई राज्य समुद्र किनारे नहीं, फिर भी वहां बिहार से ज्यादा फैक्ट्रियां
नीतीश कुमार कह रहे हैं कि बिहार समुद्र से नहीं घिरा है, इसलिए यहां उद्योग नहीं हैं। लेकिन, बिहार इकलौता राज्य नहीं है, जो लैंड लॉक है। बल्कि, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखंड, हिमाचल, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, असम जैसे राज्य भी हैं, जो चारों तरफ से जमीन से ही घिरे हुए हैं। लेकिन, इनमें से कई राज्यों में बिहार के मुकाबले फैक्ट्रियां ज्यादा हैं।
किस राज्य में कितनी फैक्ट्रियां या इंडस्ट्री हैं, इसका रिकॉर्ड सरकार के पास रहता है। हर साल सरकार एनुअल सर्वे ऑफ इंडस्ट्रीज (एएसआई) जारी करती है, जिसमें देशभर में फैक्ट्रियां, उनमें काम करने वाले कामगारों की संख्या का डेटा रहता है।
फैक्ट्रियों की संख्या के सबसे ताजा आंकड़े 2017-18 के हैं। इसके मुताबिक, बिहार में 2017-18 में 2 हजार 881 फैक्ट्रियां हैं। जबकि, 2016-17 में 2 हजार 908 फैक्ट्रियां थीं। इस डेटा की मानें तो पिछले चार साल से बिहार में चालू फैक्ट्रियों की संख्या लगातार कम हो रही है।
अब जरा उन राज्यों की बात भी कर लेते हैं, जो समुद्र से नहीं घिरे नहीं हैं। हरियाणा छोटा राज्य है। बिहार के मुकाबले आबादी भी कम है। लेकिन, यहां 7 हजार 136 फैक्ट्रियां हैं। राजस्थान भी चारों तरफ से जमीन से घिरा है और यहां भी 8 हजार 375 फैक्ट्रियां हैं। मध्य प्रदेश में 4 हजार 99 फैक्ट्रियां हैं।
जमीन ही नहीं मिलती, जमीन मिली तो कब्जा नहीं मिलता
बिहार में कई ऐसे उद्यमी हैं, जो बताते हैं कि यहां का सिस्टम ही ऐसा है, जो उद्योग नहीं लगने दे रहा। उद्यमियों को या तो जमीन ही नहीं मिलती, अगर जमीन के कागज मिल भी गए, तो कब्जा नहीं मिलता। अगर कब्जा भी मिल गया तो लोन के लिए बैंक के चक्कर काटने पड़ते हैं। फिर प्रदूषण नियंत्रण समेत तमाम सरकारी विभागों के चक्कर काटते-काटते उद्यमी हार जाते हैं। ऐसे ही तीन केस पढ़िए...
केस 1: जमीन के लिए पैसे दिए, लेकिन जमीन नहीं मिला
सत्यजीत सिंह मखाना किंग के नाम से मशहूर हैं। वो भागलपुर में मेगा फूड प्रोजेक्ट शुरू करने की तैयारी में थे। इसके लिए उन्हें जमीन चाहिए थी। बताते हैं कि जमीन के लिए सरकार को 5 करोड़ रुपए भी दे दिए, लेकिन जमीन आजतक नहीं मिली। ये करीब 145 करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट था। जमीन नहीं मिली, तो प्रोजेक्ट बंद करना पड़ा।
केस 2: छोटे विमान उड़ाने का सेटअप बनाया, सरकार ने छूट ही नहीं दी
बिजनेसमैन ऋषिकेश मिश्रा भागलपुर में प्लेन उतारना चाहते थे। उन्होंने 2013-14 में दो 12-सीटर प्लेन भी खरीदे। लेकिन, सरकार की तरफ से उन्हें न तो लैंडिंग औ न ही पार्किंग चार्ज में छूट मिली। 15 से 20 करोड़ का नुकसान झेल चुके ऋषिकेश अब डीएम से लेकर स्मार्ट सिटी डीओ के दफ्तर के चक्कर काट रहे हैं।
केस 3: जमीन लीज पर ली, मशीन के एडवांस दिए, बैंक ने लोन ही नहीं दिया
नवादा में फर्नेस ऑयल फैक्ट्री लगाने की चाहत रखने वाले रंजन ने 2017 में भागदौड़ के बाद जमीन लीज पर ले ली। फैक्ट्री की मशीनों के लिए 6 लाख एडवांस भी दे दिए। लेकिन, बैंक ने लोन ही नहीं दिया। एसबीआई से 1.5 करोड़ का लोन लेना चाह रहे थे, लेकिन इसके लिए 25 लाख रुपए खर्च हो गए।
7 बड़े कारणः बिहार में क्यों नहीं है फैक्ट्रियां-इंडस्ट्रीज?
पीएचडी चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष सत्यजीत सिंह इसके 7 कारण गिनाते हैं।
- बिहार का बजट 2.11 लाख करोड़ रुपए, लेकिन उद्योगों के लिए सिर्फ 400 करोड़ रुपए का प्रावधान।
- बिहार में उद्योग लगाने वाली करीब 200 कंपनियों को आज तक सरकार ने इनसेंटिव नहीं दिया।
- सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने के बाद भी कंपनियों को बकाया इनसेंटिव का सरकार ने भुगतान नहीं किया।
- 2015 में आई नीतीश सरकार की नई उद्योग नीति की वजह से इन्वेस्टर्स ने बिहार से मुंह मोड़ लिया।
- नई नीति में पोस्ट प्रोडक्शन इनसेंटिव पॉलिसी थी, मतलब पहले पूरा उद्योग, फिर सरकारी सहयोग।
- नए उद्योगों को लगाने में सरकार ने कोई मदद नहीं दी, लिहाजा बैंक भी लोन देने से पीछे हट गए।
- उद्योग के लिए जमीन की जरूरत, लेकिन सरकार जमीन दिलाने में ही नाकाम रही।
क्यों आ रही मुख्यमंत्री को उद्योग-धंधों की याद
कोरोना संकट के दौरान लाखों प्रवासी कामगार यह सोचकर बिहार की तरफ लौटे की यहां की सरकार उन्हें काम दिलाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बिहार में रोजगार के सीमित अवसरों के बीच काम तलाशना उनके लिए भारी पड़ा, लिहाजा वे काम के लिए फिर दूसरे राज्यों की तरफ लौट गए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2012 से ही बिहार में उद्योग-धंधों के नहीं लगने की बात करते रहे हैं। उस वक्त वो इसी आधार पर बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा भी मांगते थे। लेकिन, अब जब भाजपा उनके साथ है तो ऐसे में वो विशेष राज्य का मुद्दा जनता के बीच नहीं ले जा सकते , लिहाजा विपक्ष की तरफ से बेरोजगारी पर मांगे जा रहे जवाब को वो जनता के बीच इस अंदाज मे बयां कर रहे हैं।
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