अमिताभ बच्चन 78 साल के हो गए हैं। 11 अक्टूबर 1942 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में जन्मे अमिताभ 51 साल से बॉलीवुड में एक्टिव हैं। हालांकि, इस अवधि में तीन साल के लिए वे राजनीति में भी चले गए थे। 1984 में वे राजनेता बने और 1987 में पॉलिटिकल करियर छोड़ दिया। लेकिन यह बात कम ही लोग जानते होंगे कि राजीव गांधी की मौत के बाद उनसे दोबारा राजनीति में एंट्री को लेकर सवाल किया गया था। हालांकि, उन्होंने बड़ी ही सावधानी से टालमटोल वाला जवाब दिया था।
जाने-माने ऑथर और कॉलमिस्ट राशिद किदवई ने अपनी बुक 'नेता-अभिनेता : बॉलीवुड स्टार पावर इन इंडियन पॉलिटिक्स' में लिखा है- राजीव गांधी की मौत के एक साल बाद 1992 में अमिताभ बच्चन से पूछा गया कि क्या वे विधवा सोनिया (गांधी) को असिस्ट करने के लिए पॉलिटिक्स ज्वॉइन करेंगे?
जवाब में उन्होंने कहा- आदत के अनुसार मैं अपने काम में पूरी तरह इन्वॉल्व हूं। मैंने काम लिया है और उसे हर कीमत पर पूरा किया है। अब मैंने अपनी फिल्मों में कटौती करने का फैसला लिया है तो लोगों को लगता है कि मैंने यह पॉलिटिक्स में आने के इरादे से किया है।
जी हां, राजीव गांधी मेरे बहुत अच्छे दोस्त थे और यह भी सच है कि मैं सोनियाजी का सच्चा शुभचिंतक हूं और उनके परिवार का करीबी हूं। लेकिन मेरे पॉलिटिक्स में आने से उनकी चिंताएं और प्लान कैसे आसान हो जाएंगे? और उन्हें मेरी मदद की जरूरत क्यों है? वे बहुत स्ट्रॉन्ग, सेंसीबल और कम्पलीट इंसान हैं। अपने फैसले लेने में पूरी तरह सक्षम हैं। वे जानती हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं? बुक में यह किस्सा सुमंत मिश्रा की बुक 'मैं अमिताभ बोल रहा हूं' के हवाले से लिखा गया है।
किस्सा नं. 2 : जब अमिताभ को राजनीति में न लाने की चेतावनी दी गई
गांधी और नेहरु के पारिवारिक संबंध उस समय से हैं, जब इंदिरा गांधी की शादी भी नहीं हुई थी। इलाहाबाद में नेहरु परिवार के पुश्तैनी घर आनंद भवन में सरोजनी नायडू ने हरिवंश राय बच्चन-तेजी बच्चन से इंदिरा की मुलाकात कराई थी। यहीं से इंदिरा और तेजी की दोस्ती हुई। लेकिन 80 के दशक में इस दोस्ती में तब दरार आ गई, जब इंदिरा गांधी ने तेजी बच्चन की जगह नरगिस दत्त को राज्यसभा भेजने का फैसला लिया।
मेनका गांधी द्वारा निकाली गई मैगजीन सूर्या के एक कॉलम में इस बात का जिक्र का था कि इंदिरा गांधी के फैसले से तेजी काफी नाराज हो गई थीं। दोनों के बीच का रिश्ता काफी लंबे समय तक तनाव भरा रहा। राशिद किदवई की बुक के मुताबिक, गांधी परिवार के करीबी रहे सीनियर कांग्रेस नेता एमएल फोतेदार ने 2015 में अपने संस्मरण में लिखा था कि इंदिरा गांधी ने अपने बेटे राजीव को चेतावनी दी थी कि वे अमिताभ को राजनीति में न लाएं।
उस वक्त राजीव गांधी कांग्रेस में राष्ट्रीय महासचिव थे। फोतेदार के मुताबिक, इंदिरा गांधी ने उन्हें और अरुण नेहरु को राजीव गांधी के साथ मीटिंग में बुलाया था। उन्होंने राजीव गांधी को दो काम न करने की सलाह दी थी। पहला कि वे कभी तेजी बच्चन के बेटे (अमिताभ) को राजनीति में न लाएं और दूसरा ग्वालियर के महाराज माधव राव सिंधिया को हमेशा अपने साथ रखें।
किस्सा नं. 3: राजीव राजनीति में भी लाए, फिर इस्तीफा भी मांग लिया
राजीव गांधी ने अपनी मां की चेतावनी को नजरअंदाज किया और 1984 में अमिताभ बच्चन को इलाहाबाद लोकसभा क्षेत्र से टिकट दिया। फोतेदार के मुताबिक, उन्हें इस बात की जानकारी मिल रही थी कि अमिताभ मंत्राालय में ऑफिसर्स के ट्रांसफर और नियुक्तियों में दखलंदाजी कर रहे थे। कई नेताओं ने भी इस बात की शिकायत की थी। अपने निर्वाचन क्षेत्र का चार्ज बिग बी ने एक ऐसे इंसान को दे दिया था, जिसे लोग गंभीरता से नहीं ले रहे थे।
फोतेदार उस वक्त राजीव गांधी के राजनीतिक सचिव थे। हालांकि, उनकी मानें तो उन्होंने कभी इस बारे में राजीव गांधी को नहीं बताया। लेकिन अमिताभ न सिर्फ उत्तर प्रदेश में, बल्कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र सरकार में भी दखल देने लगे थे।
अमिताभ के इस्तीफे वाले दिन को याद करते हुए फोतेदार ने बताया, "अमिताभ उस रोज प्रधानमंत्री (राजीव गांधी) से मिलने आए थे। उस वक्त दोपहर करीब 2:45 का समय था और मैं लंच पर जाने वाला था। प्रधानमंत्री ने मुझे बुलाया। फिर हम सेवन रेस कोर्स के अंदर गए। पीएम ने एक चेयर ली और अमिताभ के दाईं ओर बैठ गए। मुझे बाईं ओर बैठने को कहा गया।
इसके बाद बाद पीएम ने अमिताभ से कहा, "फोतेदार जी आपका इस्तीफा चाहते हैं।" मैं हैरान था और जाहिर तौर पर अमिताभ भी हुए होंगे। फिर अमिताभ ने कहा, "अगर फोतेदार जी मेरा इस्तीफा चाहते हैं तो मैं तैयार हूं। पेपर दीजिए और बताइए क्या लिखना है?" इसके बाद अमिताभ ने अपना इस्तीफा लिखा, जिसे लोकसभा अध्यक्ष ने स्वीकार कर लिया।
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