उत्तराखंड के रानीखेत ब्लॉक के रहने वाले गोपाल दत्त उप्रेती की पढ़ाई- लिखाई दिल्ली में हुई। सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा के बाद बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन का काम करने लगे। अच्छी खासी कमाई भी हो रही थी। करीब 14-15 साल उन्होंने काम किया, बाल-बच्चे सबका ठिकाना दिल्ली ही हो गया।
लेकिन, उसके बाद उनकी लाइफ में कुछ ऐसा हुआ कि दिल्ली की हाईफाई लाइफस्टाइल को छोड़कर वे गांव लौट गए। आज वे 8 एकड़ जमीन पर फल और मसालों की खेती कर रहे हैं। सालाना 12 लाख रुपए का टर्नओवर है। वे देश के पहले ऐसे किसान हैं, जिन्हें ऑर्गेनिक फार्मिंग के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में स्थान मिला है।
47 साल के गोपाल बताते हैं, '2012 में कुछ मित्रों के साथ मैं यूरोप गया था। इस दौरान वहां सेब के बगीचों में जाना हुआ। वहां का मौसम, बर्फबारी, जमीन बहुत हद तक मुझे रानीखेत जैसी लगी। मैंने सोचा कि जब यहां पर सेब उगाए जा सकते हैं तो उत्तराखंड में भी उगाए जा सकते हैं। मेरे लिए ये टर्निंग पॉइंट था।'
वो कहते हैं, 'वहां से वापस इंडिया आने के बाद अब कुछ दिनों तक मेरे मन में असमंजस की स्थिति बनी हुई थी कि क्या करूं, कैसे करूं। फिर मैंने पता करना शुरू किया कि इसकी खेती के लिए ट्रेनिंग कहां होती है, क्या प्रॉसेस है। उसके बाद मैं नीदरलैंड गया। वहां कई एक्सपर्ट से मिला और सेब की खेती की पूरी प्रॉसेस को समझा। इसी दौरान कुछ दिनों के लिए फ्रांस भी जाना हुआ था। वहां भी सेब की खेती को देखा और बाकायदा उसके लिए ट्रेनिंग भी ली।'
गोपाल बताते हैं कि इसके बाद मैंने तय कर लिया कि अब सेब की खेती करनी है। परिवार को बताया तो सभी ने विरोध किया। पत्नी ने कहा कि जमा जमाया काम छोड़ के रिस्क लेना ठीक नहीं है। मैंने उन्हें समझाया और खेती के फायदे के बारे में बताया। इसके बाद मैं 2014-15 में दिल्ली से रानीखेत शिफ्ट हो गया। परिवार और बच्चे दिल्ली ही रह गए। यहां आने के बाद किराए पर थोड़ी जमीन ली और खेती का काम शुरू किया। मैंने विदेशों से प्लांट मंगाने की बजाय हिमाचल प्रदेश से ही प्लांट मंगाए। तीन एकड़ जमीन पर करीब 1000 पौधे लगाए। एक साल बाद उन प्लांट्स में फ्रूट तैयार हो गए।
वो बताते हैं कि फ्रूट्स तैयार होने के बाद हमारे सामने सबसे बड़ा सवाल था कि अब इसे कहां बेचा जाए। चूंकि, लोकल मंडियों में हमारे सेब की कीमत सही नहीं मिलती। फिर मैंने गूगल की मदद से ऐसे स्टोर और कंपनियों के बारे में जानकारी जुटाई जो ऑर्गेनिक सेब की डिमांड करते हैं। उन्हें फोन करके अपने प्रोडक्ट के बारे में जानकारी दी। ज्यादातर लोग तो भरोसा नहीं किए, लेकिन जिन लोगों ने शुरुआती दौर में हमसे सेब लिया उनका रिस्पॉन्स बहुत अच्छा रहा। अगली बार से कस्टमर और डिमांड दोनों में बढ़ोतरी हो गई। कई लोग तो एडवांस बुकिंग करने लगे।
गोपाल अभी सेब के साथ ही हल्दी, लहसुन, धनिया सहित कई मसालों की भी खेती करते हैं। वो कहते हैं कि एक इंच भी जमीन खाली नहीं जानी चाहिए। इसी साल उन्होंने 7 फीट की धनिया उगाकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराया है। इस धनिया की विशेषता ये है कि इसमें प्रोडक्शन नॉर्मल धनिये से करीब 10 गुना ज्यादा होता है और क्वालिटी भी अच्छी होती है। वो अब इसका पेटेंट भी कराने वाले हैं।
गोपाल के साथ अभी 5 लोग काम करते हैं। फल और मसाले की फार्मिंग के साथ वे प्रोसेसिंग पर भी काम कर रहे हैं। पिछले साल एक टन से ज्यादा सेब खराब हो गए तो उन्होंने उससे जैम बनाकर मार्केट में सप्लाई कर दिया। इसमें भी अच्छी कमाई हुई। अब वे हल्दी और दूसरे मसालों की भी प्रोसेसिंग यूनिट तैयार करने वाले हैं।
वो कहते हैं कि अब हमारी खेती का दायरा बढ़ गया है। हम आगे और ज्यादा जमीन किराए पर लेकर खेती करने वाले हैं। प्रोडक्शन बढ़ेगा तो उसे खपाने के लिए मार्केट भी सेट होना चाहिए। इसलिए अगले साल से हम ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी आने वाले हैं।
सेब की खेती कैसे करें
गोपाल बताते हैं कि सेब की खेती के लिए सबसे जरूरी चीज है इसकी ट्रेनिंग। किसी एक्सपर्ट किसान से सेब की खेती को समझना चाहिए। जरूरत पड़े तो कुछ दिन किसानों के साथ रहकर हर छोटी बड़ी जानकारी हासिल करनी चाहिए। दूसरी सबसे अहम बात है कि इसकी खेती के लिए ठंडी वाली जगह होनी चाहिए। पहाड़ी बर्फीली इलाके में सेब की अच्छी खेती होती है। इसके साथ ही धैर्य और डेडिकेशन की भी जरूरत होती है। प्लांट्स की अच्छे तरीके से देखभाल की जरूरत होती है।
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