आज गुरुवार के संयोग में प्रदोष व्रत किया जा रहा है। ये आषाढ़ महीने का पहला प्रदोष व्रत है। इस व्रत के प्रभाव से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस व्रत में भगवान शिव-पार्वती की पूजा करने से सौभाग्य बढ़ता है। शिव पुराण के अनुसार प्रदोष व्रत करने से हर तरह के दोष दूर हो जाते हैं। इस व्रत में सुबह और शाम दोनों समय भगवान शिव की पूजा की जाती है। लेकिन शाम को विशेष पूजा करने का विधान है। शाम को पूजा करने के बाद भोजन किया जाता है। इसके अगले ही दिन शिव चतुर्दशी यानी मासिक शिवरात्रि पर्व होने से ये दो दिन शिव पूजा के लिए बहुत खास रहेंगे।
पूजा और व्रत की विधि
- सुबह जल्दी उठकर नहाएं। तीर्थ स्नान करने का महत्व है, लेकिन संभव न हो तो पानी में गंगाजल डालकर नहा सकते हैं।
- शिवजी की पूजा करें और दिनभर व्रत रखने का संकल्प लें। कोई विशेष कामना से व्रत रखना चाहते हैं तो संकल्प में उसका भी नाम लेना चाहिए।
- सूर्यास्त होने के एक घंटें पहले नहाकर सफेद रंग के साफ कपड़े पहन लें।
- उत्तर-पूर्व दिशा में गंगाजल छिड़ककर जगह पवित्र कर लें और उस जगह पूजा करें।
- दिनभर अन्न न खाएं। शाम को पूजा के बाद भोजन कर सकते हैं।
- इसके बाद शिवजी की पूजा करें। पूजा के दौरान अभिषेक करें और ॐ नम: शिवाय मन्त्र का जाप भी करते रहें।
- पूजा के बाद व्रत की कथा सुनकर आरती करें। फिर प्रसाद बांटकर भोजन कर सकते हैं।
गुरु प्रदोष व्रत का महत्व
शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि आषाढ़ महीने में प्रदोष व्रत और भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। इस महीने में गुरुवार को प्रदोष व्रत करने से हरि हर कृपा मिलती है। यानी भगवान शिव और विष्णु प्रसन्न होते हैं। शिव पुराण के अनुसार गुरुवार को प्रदोष व्रत करने से मोक्ष प्राप्ति होती है। इस व्रत से परिवार सुखी और निरोगी रहता है। इसके साथ ही सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। गुरु प्रदोष व्रत से दुश्मनों पर जीत मिलती है। आषाढ़ महीने के कृष्णपक्ष का प्रदोष व्रत गुरुवार के दिन होने से सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिए के साथ-साथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला होता है।
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