बड़ी आईटी कंपनियों ने एक साल के लिए वर्क फ्रॉम होम किया, 70% स्टार्टअप ने बिजनेस बदला और दोगुना मुनाफा कमाया

बिरयानी, चार मीनार, आईटी और स्टार्टअप के शहर हैदराबाद ने लॉकडाउन के बाद आगे बढ़ने की रफ्तार तेज कर दी है। बेंगलुरु, पुणे, चेन्नई और गुड़गांव के आईटी सेक्टर में सैचुरेशन आने के बाद इंटरनेशनल कंपनियों ने नए ठिकाने के तौर पर हैदराबाद को चुना था। एक तरफरिवायतों से रूबरू करवाता पुराना शहरतो दूसरी ओर हाईटेक आईटी सिटी की चमचमाती इमारतें। आईटी सिटी की फेहरिस्त में देश में दूसरे नंबर पर काबिज हैदराबाद के आईटी सेक्टर की गलियां इन दिनों सूनी हैं।

ज्यादातर कंपनियों ने एक साल के लिए दिया है वर्क फ्रॉम होम

सभी बड़ी कंपनियों में एचआर स्टाफ, सिक्योरिटी और हाउसकीपिंग वाले तो आ रहे हैं, लेकिन दफ्तरों में बाकी स्टाफ नहीं हैं। आईटी कंपनियों ने अपने एम्प्लाइज को एक-एक साल के लिए वर्क फ्रॉम होम दे दिया है। यहां की बड़ी आईटी कंपनियों पर कोरोनाका असर नाममात्र है, लेकिन छोटी स्टार्टअप कंपनियांबुरी तरह प्रभावित हुई हैं। 70 फीसदी स्टार्टअप अब नए बिजनेस में उतर चुके हैं।

हैदराबाद में 1 हजार 455 आईटी कंपनियों में करीब 5 लाख लोग काम करते हैं। आंकड़े बताते हैं कि हैदराबाद की आईटी कंपनियों का ग्रोथ रेट 18 फीसदी है जो एवरेज नेशनल ग्रोथ से कहीं ज्यादा है। तेलंगाना के प्रिंसीपल सेक्रेटरी, आईटी जयेश रंजन के मुताबिक, ‘हैदराबाद में सबसे पहले आईटी कंपनियों से लॉकडाउन हटाया गया था। सरकार ने इन कंपनियों को काम करने की इजाजत दे दी है, लेकिन कंपनियां वर्क फ्रॉम होम पर फोकस कररही हैं।

आईटी सिटी की फेहरिस्त में देश में दूसरे नंबर पर काबिज हैदराबाद के आईटी सेक्टर की गलियां इन दिनों सूनी हैं। फोटो-ताराचंद गवारिया

लॉकडाउन के बावजूद तेलंगाना में आईटी सेक्टर का आउटपुट बेहतरीन रहा, क्योंकि सभी काम कर रहे थे और यह काम कहीं से भी बैठकर हो सकता है।हैदराबाद की आईटी कंपनियों का सालाना एक्सपोर्ट बिजनेस 1 लाख 38 करोड़ रुपए काहै। कोविड-19 हैदराबाद की आईटी इंडस्ट्री के लिए बेअसर रहेगा,क्योंकि दुनिया की ज्यादातर बड़ी कंपनियों के पास पहले से प्रोजेक्ट हैं।अमेजन जैसी कंपनियों ने तो कोरोना महामारी में अपने एम्प्लाइज को इंसेंटिव भी दिए हैं। जयेश रंजन के मुताबिक, राज्य की आईटी सेक्टर के लिए जो पॉलिसी है वो इसे हर साल ग्रोथ देगी।

ऑनलाइन हो रही मीटिंग

इन कंपनियों के लिए रोज काम करने का तरीका भी नहीं बदला है। मल्टीनेशनल कंपनी एनवीडिया के सीनियर मैनेजर मसूद शेख बताते हैं ‘आईटी कंपनियों में मीटिंग TEAM ऐप के जरिये हो रही है, जहां जूम पर लिमिटेड लोग कुछ समय के लिए हीमीटिंग में शामिल हो सकते हैं।वहीं, माइक्रोसॉफ्ट टीम ऐप सेएक साथ 100 से ज्यादा लोग अनलिमिटेड टाइम के लिए जुड़ सकते हैं। इस तरह के और नए-नए सॉफ्टवेयर आ रहे हैं।’

मसूद शेख कहते हैं कि ऑफिस जाकर भी हम लोग दुनिया भर के लोगों से ऑनलाइन मीटिंग करते थे।अब फर्क यह है कि मीटिंग घर से कर रहे हैं। अब तो ट्रैफिक में वक्त बरबाद नहीं होता है और प्रोडक्टिविटी भी बढ़ गई है।

आईटी सेक्टर में पुणे 5वेंनंबर पर आता है। हैदराबाद के आईटी सेक्टर से पुणे के मुकाबलेबहुत कम लोगों की नौकरियां गईं हैं।लेकिन, जिनकी गईं हैं वेपरेशान हैं। बेशक ऊपरी तौर पर आईटी सेक्टर की चमचमाती दुनिया दिखाई दे रही है लेकिन अंदर डर भी है। आईटी सेक्टर में सबसे ज्यादा काम यूएस जनरेट करता है और वहां हालात अभी ठीकनहीं है।

हैदराबाद की बड़ी आईटी कंपनियों पर कोरोना का असर कम हुआ है लेकिन छोटी स्टार्टअप कंपनियांबुरी तरह प्रभावित हुईं हैं। फोटो-ताराचंद गवारिया

कंपनी ने मांग लिया इस्तीफा
मुंबई की रहने वालीं जाह्नवी बीते 18 साल से हैदराबाद में एक यूएस हेल्थकेयर कंपनी में अच्छी सैलरी पर काम कर रही थीं। 21 मई को कंपनी का मेल आया कि आप अपने पर्सनल ईमेल आईडी से रिजाइन भेज दें। वह बताती हैं ‘आईटी की नौकरी की वजह से दो बारमेरा मिसकैरेज हो चुका है, मैं अब मां नहीं बन सकती। मैंने 18 साल की इस नौकरी के लिए अपना सब खो दिया और मुझे क्या मिला?’

जाह्नवी कहती हैं, ‘इन शीशे की चमचमाती आईटी इमारतों में बाहर से पैसा, रुतबा और इंटेलिजेंट होने का वहम जरूर दिखाई देता है, लेकिन जरा सी परतें खरोंचें तो जावा, सी प्लस-प्लस से लिखी गई इस दुनिया के नीचे बहुत सी आहें, तिरस्कार, खौफ, टॉर्चर और बदनामी का डर तैर रहा है।’

जाह्नवी ने कंपनी को हर तरह से समझाया कि वह उसे डेली वेज या कॉन्ट्रेक्ट पर कर दें, लेकिन कंपनी फैसला ले चुकी थी। पिता का न्यूरो और किडनी का ऑपरेशन हुआ है। बूढ़े मां-बाप मुंबई में किराए के मकान में रहते हैं जिनके इलाज से लेकर घर का खर्च तक जाह्नवीउठाती हैं। वो बताती हैं कि उन्हें15 लाख रुपए ईएमआई चुकाना है।

आईटी कंपनियों में इन दिनों ऐसी हजारोंकहानियां हैं। आईटी एम्पलाईएसोसिएशन के फाउंडर विनय कुमार प्यारका कहते हैं, ‘मजदूरों की खबरें बनती हैं।कॉरपोरेट में रिसेशन की चिंता होती है।एमएसएमई को लोन दिए जाते हैं।डॉक्टरों की वाह-वाह होती है, लेकिन हम लोग दिन-रात काम करते हैं, हमारा कोई नाम लेने वालाभी नहीं है। हमें तो मजदूरों की तरह कोई राशन भी नहीं दे रहा।न हम लाइन में लग कर खिचड़ी खा सकते हैं।’

वर्क फ्रॉम होम से सबसे बड़ा नुकसान कमर्शियल प्रॉप्रटी में डील करने वाले रियल एस्टेट सेक्टर का है। क्योंकि, भविष्य में लोग बड़ी-बड़ी इमारतों में पैसे खर्च करना नहीं चाहेंगे। फोटो-ताराचंद गवारिया

आईटी सेक्टर में नौकरियां जाने की खबरें कम ही बाहर आती हैं

विनय के पास अभी तक सिर्फ 500 लोगों की नौकरियां जाने की शिकायतें आई हैं, लेकिन वो कहते हैं, आईटी सेक्टर में नौकरियां जाने की खबरें कम ही बाहर आती हैं। वजह यह है कि नई नौकरी के लिए पिछली कंपनी में कर्मचारी का बैकग्राउंड वैरिफकेशन किया जाता है, इसी डर से कोई विरोध नहीं करता।

आरटेथ में काम करने वाले संदीप बताते हैं कि आईटी सेक्टर की उन्हीं कंपनियों से नौकरियां गई हैं, जिनके कॉन्ट्रेक्ट अभी साइन होने थे और उन्होंने उसके लिए एम्प्लॉईरख लिए थे। ज्यादातर कंपनियों के पास पहले से पांच से दस साल तक के काम हैं।

दुनिया के एक बड़े बैंक में सपोर्ट फंक्शन की सीनियर मैनेजर जया 18 साल से आईटी सेक्टर में जॉब कर रही हैं। कहतीं हैं, मैं अपने घर से ऑफिस की 15 किमी की दूरी डेढ़ घंटे में पूरी कर पाती हूं। क्योंकि ट्रैफिक बहुत होता है। इसके साथ ही मुझेहर आधे घंटे में मेल चेक करने होते हैं और कॉल अटेंड करनेहोते हैं। मैं कम से कम रास्ते में 20 ब्रेक लेते हुए जाती हूं, लेकिन वर्क फ्रॉम होम से मैं इतनी खुश हूं कि मुझे वो टॉर्चर नहीं सहना पड़ता है।’

उम्मीद है कि बड़ी-बड़ी कंपनियां जल्द ही ऑफिस से काम शुरू करेंगी क्योंकि उन्होंने इसकेइंफ्रास्ट्रक्चर पर करोड़ों खर्च किए हैं।फोटो-ताराचंद गवारिया

काम के नेचर पर डिपेंड करेगा कि वर्क फ्रॉम होम स्थाई होगा कि नहीं

वर्क फ्रॉम होम की सफलता को देखते हुए क्या कंपनियां भविष्य में परमानेंट वर्क फ्रॉम होम का फैसला ले सकती हैं? इस बात परहैदराबाद में फ्रेंच मल्टीनेशनल कंपनी के पजेमिनी में सीनियर पोस्ट पर कार्यरत अमित कुमार बताते हैं कि बेशक अभी साल-दो साल कंपनियां वर्क फ्रॉम होम दे रही हैं, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं हो पाएगा। क्योंकि आईटी में कई तरह केकाम होते हैं।

अमित कुमार के मुताबिक, तमाम बड़ी आईटी कंपनियों ने पहले से ही ऐसी व्यवस्था बनाई हुई थी कि वह रिमोट एरिया या घर से काम करवा सकें। जबकि, छोटीकंपनियों से इस वजह से लोग निकाले गए हैं या फिर वह बंद हुई हैं क्योंकि वर्क फ्रॉम होम हर कंपनी अफोर्ड नहीं कर सकती है।

बड़ी कंपनियां भी आखिरकार ऑफिसेसमें लौटेंगी, क्योंकि उनका एचआर स्टाफ तो ऑफिस आ ही रहा है, उनका करोड़ों रुपएकी लागत से बना इंफ्रास्ट्रक्चर है। यह पद और काम के नेचर पर डिपेंड करेगा कि कंपनी किसे वर्क फ्रॉम होम देती है किसे ऑफिसआना पड़ेगा।

हैदराबाद के छोटे स्टार्टअप बंद, ज्यादातर ने बदला काम का नेचर
बीते पांच साल से ऑटोमोबाइल सेक्टर में इस्तेमाल होने वाली कुछ चीजोंके लिए स्टार्टअप शुरू करने वाले विश्वनाथ मल्लाडी ने कोरोनाके चलते अपना बिजनेस बदल लिया है। पहले वेऑटोमोबाइल के लिए एक्सेसरीजबनाया करते थे, उनका महीने का टर्नओवर 15 लाख रुपएथा। लेकिन 23 मार्च से 20 अप्रैल तक सेल में 75 फीसदी की गिरावट आ गई।

विश्वनाथ बताते हैं ‘मेरे सामने दो ऑप्शन थे, पहला दूसरे स्टार्टअप की तरह बंद कर दूं या पहले से ज्यादा इनोवेटिव कुछ और करूं’। विश्वनाथ अपने दूसरे ऑप्शन के साथ गए।

उन्होंने अपनी कंपनी फीलगुड इनोवेशन्स प्राइवेट लिमिटेड के जरिएऑटोमोबाइल की एक्सेसरीजवाला काम बंद कर दिया और पीपीई किट, सर्जरी गाउन, इंजेक्शन मोल्ड, फेसशील्ड और मास्क बनाने शुरू कर दिए। साथ ही उनकी कंपनी ने एक ऐसी सैनिटाइज किट तैयार की है जिसमें किसी भी सामान को रखेंगे तो वह 3-4 मिनट में सैनिटाइज हो जाएगा। वह बताते हैं ‘हर दिन एन-95 मास्क पर पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं है, आप इसमें अपना मास्क रखें तो वह 3 मिनट में सैनिटाइज हो जाएगा।

स्टार्टअप एक्सपर्ट श्रीनिवास माधवम बताते हैं किहैदराबाद में करीब2000 स्टार्टअप थे, इनमेंसे लगभग 300 बंद हो चुके हैं।फोटो-ताराचंद गवारिया

नए बिजनेस से हो रहा ज्यादा फायदा

विश्वनाथ के अनुसार, इस नए बिजनेस में उनका महीने का टर्नओवर लगभग 35 लाख रुपएहै, यानी पहले वाले बिजनेस के मुकाबलेदोगुना। वह यह भी बताते हैं कि हैदराबाद के 70 फीसदी स्टार्टअप नए-नए इनोवेशंस कर रहे हैं और उससे उनकी पहले से ज्यादा कमाई हो रही है।

स्टार्टअप एक्सपर्ट श्रीनिवास माधवम बताते हैं किहैदराबाद में करीब2 हजार स्टार्टअप थे, इनमेंसे लगभग 300 बंद हो चुके हैं। कोरोना के चलते लॉजिस्टिक, ऑनलाइन, एजुकेशन, हेल्थकेयर वाले स्टार्टअप की कमाई बढ़ी है,लेकिन फूड, ट्रेवलिंग से जुड़े स्टार्टअप बंद हुए हैं। माधवमके मुताबिक, ज्यादातर स्टार्टअप ने अपने काम का नेचर बदल लिया है।

बड़ी-बड़ी इमारतों पर टू-लेट का बोर्ड लग गया है

3 हजार से ज्यादा स्टार्टअप का क्लब चलाने वाले विवेक श्रीनिवासन का कहना है कि देखा जाए तो वर्क फ्रॉम होम से सबसे बड़ा नुकसान कमर्शियल प्रॉप्रटी में डील करने वाले रियल एस्टेट सेक्टर का है। अगर किसी का भी बिज़नेस घर से चलने लगातो वह एक-दो करोड़ रुपएऑफिस के इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च नहीं करेगा।

हैदराबाद और बेंगलुरु में ऐसी कई इमारतों पर टू-लेट का बोर्ड लग गया है। घर से काम करने पर कंपनियों के ज्यादातरखर्च बच रहे हैं। वर्ष 2008 में आए रिसेशन के आधार पर नेसकॉम ने कहा है कि 60 फीसदी स्टार्टअप बंद हो जाएंगे।

हालांकि, विवेक बताते हैं कि ऐसा इसलिए नहीं होगा क्योंकिस्टार्टअप अपने काम का नेचर बदल लेंगे, जैसा कि हो भी रहा है। वे बताते हैं कि 2008 में भी ऐसा ही कहा गया था लेकिन उल्टे ज्यादा स्टर्टअप सामने आए थे, अब भी ऐसा ही होगा।



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आईटी और स्टार्टअप का शहर हैदराबाद लॉकडाउन के बाद अब रफ्तार पकड़ रहा है। फोटो- ताराचंद गवारिया।


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