रविवार, 21 जून को सूर्य ग्रहण और रविवार, 5 जुलाई को मांद्य चंद्र ग्रहण होगा। इससे पहले 5 जून को भी मांद्य चंद्र ग्रहण हुआ था। ऐसे ही ग्रहण 58 साल पहले भी हुए थे। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार 1962 में 17 जुलाई को मांद्य चंद्र ग्रहण, 31 जुलाई को सूर्य ग्रहण और 15 अगस्त को पुन: मांद्य चंद्र ग्रहण हुआ था। उस समय भी शनि मकर राशि में वक्री था।
पं. शर्मा ने बताया कि 1962 में भी ग्रहों की ऐसी ही स्थिति थी, जैसी आज है। उस समय में चीन और भारत के बीच तनाव बढ़ा था और आज भी दोनों देशों की बीच विवाद शुरू हो गया है। सोमवार रात लद्दाख की गालवन वैली में बातचीत करने गए भारतीय जवानों पर पर चीन की सेना ने हमला कर दिया। इसमें भारत के कमांडिंग ऑफिसर सहित कई सैनिक शहीद हो गए हैं। उसी गालवन वैली में ही 1962 में 33 भारतीयों की जान गई थी।
बृहतसंहिता में लिखी है आषाढ़ मास के ग्रहण की भविष्यवाणी
21 जून को आषाढ़ी अमावस्या रहेगी और 5 जुलाई को आषाढ़ मास की पूर्णिमा रहेंगी। ये दोनों ग्रहण आषाढ़ मास में हो रहे हैं। पं. शर्मा ने बताया कि ज्योतिष के महत्वपूर्ण ग्रंथ बृहतसंहिता में आषाढ़ मास के ग्रहण की भविष्यवाणी बताई गई है। बृहत्संहिता के राहुचाराध्याय में लिखा है कि-
आषाढ़पर्वण्युदपानवप्रनदी प्रवाहान फलमूलवार्तान।
गांधारकाश्मीरपुलिन्दचीनान् हतान् वदेंमण्डलवर्षमस्मिन्।।
इस श्लोक का अर्थ यह है कि आषाढ़ मास की अमावस्या में सूर्य ग्रहण और पूर्णिमा में चंद्र ग्रहण हो तो उदपान यानी वापी, कुएं, नदी और तालाब के किनारे में रहने वाले लोगों को, फल मूल खाने के वाले, गांधार, कश्मीर, पुलिंद, चीन क्षेत्र में रहने वाले लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इन क्षेत्रों में कोई प्राकृतिक आपदा आ सकती है या किसी अन्य वजह से यहां संकट आता है।
21 जून कोग्रहण का समय
21 जून को खंडग्रास यानी आंशिक सूर्य ग्रहण रहेगा। ये ग्रहण भारत के अलावा एशिया, अफ्रिका और यूरोप कुछ क्षेत्रों में भी दिखेगा। ग्रहण का स्पर्श सुबह 10.14 मिनट पर, ग्रहण का मध्य 11.56 मिनट पर और ग्रहण का मोक्ष 1.38 मिनट पर होगा। ग्रहण का सूतक काल 20 जून की रात 10.14 मिनट से आरंभ हो जाएगा। सूतक 21 जून की दोपहर 1.38 तक रहेगा। ग्रहण का समय अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग हो सकता है। इस वर्ष का यह एक मात्र ग्रहण होगा जो भारत में दिखेगा और इसका धार्मिक असर भी मान्य होगा। ये ग्रहण मृगशिरा नक्षत्र में और मिथुन राशि में लगेगा। इस संबंध में बृहतसंहिता में लिखा है कि-
मिथुने प्रवरागंना नृपा नृपमात्रा बलिन: कलाविद:।
यमुनातटजा: सबाह्लिका मत्स्या: सुह्यजनै: समन्वित:।।
इस श्लोक का अर्थ यह है कि अगर मिथुन राशि में सूर्य या चंद्र ग्रहण होता है तो महिलाओं, राजा, मंत्री, कला क्षेत्र में काम करने वाले लोग, यमुना नदी के तट पर निवास करने वाले लोग, मध्य देश, गया, विंध्य क्षेत्र में रहने वाले लोगों को ज्यादा कष्टों का सामना करना पड़ता है।
प्राकृतिक आपदा आने के योग
मृगशिरा नक्षत्र के स्वामी मंगल है। मकर राशि में स्थित वक्री शनि की पूर्ण तृतीय दृष्टि, मीन राशि में स्थित मंगल पर पड़ रही है, मंगल की सूर्य पर दृष्टि और शनि-गुरु की युति है। ग्रहों की ये स्थिति बड़े भूकंपन का कारण बन सकती है। इसके साथ ही अन्य प्राकृतिक आपदा आने के भी योग बन सकते हैं।
सभी राशियों पर ग्रहण का असर
मेष, सिंह, कन्या, कुंभ राशि के लिए सूर्य ग्रहण शुभ फल देने की स्थिति में रहेगा। इन लोगों को भाग्य का साथ मिल सकता है। वृष, मिथुन, कर्क, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर और मीन राशि के लोगों को सतर्क रहकर काम करना होगा। इन लोगों के लिए बाधाएं बढ़ सकती हैं।
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